इंजाइम ट्रांसप्‍लांट से दुर्लभ रोगों के रोगियों की जीवन अवधि बढ़ सकती है

इंजाइम ट्रांसप्‍लांट से दुर्लभ रोगों के रोगियों की जीवन अवधि बढ़ सकती है


दुर्लभ आनुवांशिक रोगों से होने वाली समय पूर्व मौतों में कमी लाने के सरकार के लक्ष्य के बीच स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि इंजाइम प्रतिस्थापन उपचार पद्धति (ईआरटी) से ऐसे मरीजों की जीवन अवधि 10-15 साल बढ़ायी जा सकती है।

चूंकि दुर्लभ आनुवांशिक रोग की कोई औपचारिक परिभाषा नहीं है, ऐसे में वैश्विक स्वास्थ्य निकायों का कहना है कि यह तीन कारकों -- ऐसे रोग से ग्रस्त रोगियों की संख्या, उस रोग का दायरा और उपचार की गैर उपलब्धता, से परलक्षित होता है।

भारत में फिलहाल दुर्लभ रोगों के 8000 से अधिक रोगी हैं। ऐसे रोगों में हंटर सिंड्रोम , गौचर रोग और फैब्री रोग जैसी बीमारियां शामिल हैं। 

ऐसी बीमारियों में कोशिका के लाइसोसोम नामक अंग में एक या एकाधिक इंजाइमों की कमी पैदा हो जाती है जिससे उसके नीचे की सतह मोटी होती चली जाती है।

ईआरटी को पिछले दो दशक में दुनिया के विभिन्न हिस्सों खासकर जर्मनी, इटली और इसराइल में परखा गया और मरीज के शारीरिक लक्षणों में बड़ा सुधार देखा गया। 

इस उपचार के तहत सूई के माध्यम से दवा पहुंचायी जाती है और विसंगति दूर की जाती है।

जर्मनी के यूनिर्वसिटी हॉस्पीटल में एलिप्टोलोजी एडं सोशल मेडिसीन में वरिष्ठ फीजिसियन क्रिस्टिना लैंपे ने कहा कि इस उपचार के अच्छे नतीजे सामने आए हैं। इस पद्धति में दर्द कम होता है और इसमें संक्रमण भी बहुत कम फैलता है।

ऑर्गनाइजेशन फोर रेयर डिजेज इन इंडिया के अनुसार भारत में सभी दुर्लभ रोगों का बहुत बाद में पता चल पाता है और उस समय उपचार प्रभावी नहीं होता है। फिलहाल 20 भारतीय रोगियों में एक इस बीमारी के चपेट में होता है।

वैसे तो ऐसे रोगियों के उपचार में वित्तीय सहायता पहुंचाने के लिए 2017 में राष्ट्रीय दुर्लभ रोग उपचार नीति की घोषणा की गयी थी और 100 करोड़ रुपये का कोष बनाया गया था लेकिन पिछले साल नवंबर में यह कहते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया कि फिलहाल संचारी एवं गैर संचारी रोगों पर सरकार का ज्यादा ध्यान है।

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